शनिवार, 27 मार्च 2010

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कुन्द के फूल, चन्द्रमा और शंख के समान सुन्दर गौरवर्ण, जगज्जननी श्रीपार्वतीजी के पति, वांछित फलके देनेवाले, [दुखियोंपर सदा] दया करनेवाले, सुन्दर कमलके समान नेत्रवाले, कामदेव से छुड़ानेवाले, [कल्याणकारी] श्रीशंकरजीको मैं नमस्कार करता हूँ।।3।।



कौसल्यादि मातु सब मन अनंद अस होइ।आयउ प्रभु श्री अनुज जुत कहन चहत अब कोई।।

कौसल्या आदि सब माताओं के मन में ऐसा आनन्द हो रहा है जैसे अभी कोई कहना ही चाहता है कि सीताजी और लक्ष्मणजीसहित प्रभु श्रीरामचन्द्रजी आ गये।।



सावणबहुलपडिवए बालवकरणे अभीइनक्खत्ते।सव्वत्थ पडमसमये जुअस्स आइं वियाणाहि।।